तुम्हारे संग एहसास
Hello सभी को मेरा नाम सोनू(संजय) हैं। जिंदगी में बहुत कुछ देखा, बहुत कुछ महसूस किया लेकिन जो अहसास इस कहानी से जुड़ा है, वो सबसे खास है, ये मेरी अपनी कहानी है - एक ऐसा सफर जो सिर्फ मेरी किताब के पन्नों में कैद रह जाता अगर मैने इसे तुमसे न बाटा होता।
2023 का वो दिन...
(डायरी का पहला पन्ना)
"कुछ तारीखें जिंदगी में बस दर्ज हो जाती हैं... बिना हमारी इजाज़त के।"
2023 का वो दिन... जब मैंने उसे पहली बार देखा। सब कुछ नॉर्मल था, लेकिन उस पल मेरी पूरी दुनिया बदल गई।
मुझे नहीं पता था कि ये मुलाकात मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत याद बनेगी... और सबसे दर्दनाक भी।
कॉलेज नया था। सब अपने-अपने ग्रुप बना रहे थे, दोस्ती कर रहे थे। मैं हमेशा की तरह अकेला, बस कैंटीन में एक कोना पकड़कर बैठ गया। धीरे-धीरे नए चेहरों से पहचान हो रही थी, लेकिन उसी भीड़ में वो बैठी थी... चश्मा लगाए, प्यारी सी मुस्कान लिए।
न जाने क्यों... कुछ अजीब सा लगा। कुछ अपना सा।
वो अपने फोन को सीने से लगाकर बैठी थी, बार-बार स्क्रीन देख रही थी। मुझे लगा, शायद कोई परेशानी होगी। लेकिन फिर पता चला— वो अपनी मम्मी के कॉल का इंतज़ार कर रही थी।
कुछ ही देर में वो उठी और चली गई। बस इतनी ही थी हमारी पहली मुलाकात... लेकिन काश, मुझे पता होता कि ये शुरुआत थी मेरी सबसे खूबसूरत मोहब्बत की।
कुछ दिनों बाद...
(डायरी का दूसरा पन्ना)
कैंटीन में बैठकर हम सब फिल्मों और वेब सीरीज़ की बातें कर रहे थे।
मैंने भी कुछ सजेशन दिए।
वहीं से हमारी बातें शुरू हुईं।
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं किसी लड़की से इतनी आसानी से बात कर रहा था, क्योंकि सच कहूं तो... मुझे लड़कियों से बात करना आता ही नहीं था।
सब नॉर्मल लग रहा था... फिर एक दिन, मैने कहा—
"चलो, इंस्टाग्राम पर कनेक्ट होते हैं!"
हमारी चैटिंग शुरू हो गई।
धीरे-धीरे... मुझे उसकी बातें अच्छी लगने लगीं।
शायद ये सिर्फ अट्रैक्शन था— मैंने खुद को समझाने की बहुत कोशिश की, "ये नॉर्मल है... भूल जाऊंगा!"
लेकिन...
लव... या बस एक खूबसूरत वहम?
(डायरी का तीसरा पन्ना)
मुझे नहीं पता ये प्यार था या कुछ और, लेकिन उससे बातें करना, मुलाकातें करना... अच्छा लगने लगा था।
वो मेरी ज़िन्दगी बनती जा रही थी, और मुझे पता भी नहीं चला।
हर दिन हम साथ घूमने जाने लगे।
मैंने उसे अपना मान लिया था।
लेकिन... एक दिन, उसने मुझसे बहुत बुरे तरीके से बात की।
फिर अचानक, मुझे ब्लॉक कर दिया।
कोई सफाई नहीं, कोई वजह नहीं।
मैं समझ नहीं पाया कि क्या हुआ।
1 महीना, 17 दिन...
इतना वक्त बीत गया। मैं उसे रोज़ कॉलेज में देखता था, लेकिन अब हम अजनबी बन चुके थे।
फिर अचानक, एक दिन हमारी नज़रें टकराईं।
उसने मुझे अनब्लॉक कर दिया।
मेरी उंगलियां खुद-ब-खुद फोन पर चली गईं—
"कैसी हो?"
शायद वो चाहती थी कि मैं पूछूं—
"तुमने ऐसा क्यों किया?"
लेकिन मैंने नहीं पूछा... क्योंकि जवाब जानकर भी मैं उसे बदल नहीं सकता था।
बस मैंने इतना कहा—
"ऐसा क्या करूं कि ये दोबारा ना हो?"
उसने जवाब दिया—
"अगर हम बात करें या मिलें, तो किसी को पता नहीं चलना चाहिए।"
मैं मान गया।
अब फिर वही मुलाकातें शुरू हो गईं।
वही हंसी, वही प्यार, लेकिन इस बार मैं... दिल टूटने के बाद भी मुस्कुरा रहा था।
मैंने कह दिया... लेकिन वापस ले लिया।
(डायरी का चौथा पन्ना)
उस रात...
मैंने उसे मैसेज किया—
"I love you."
पर अगले ही पल डर गया...
उसके देखने से पहले ही मैसेज डिलीट कर दिया।
लेकिन वो समझ गई थी।
उसने मुझे समझाया, और मैं... समझ भी गया, पर खुद को रोक नहीं पाया।
फिर वही हुआ... जो नहीं होना चाहिए था।
(डायरी का पांचवा पन्ना)
एक दिन फिर से...
उसने मुझसे बुरी तरह बात की और ब्लॉक कर दिया।
इस बार दिल सच में बिखर गया था।
अब जो वक्त गुज़र रहा था, वो बहुत बुरा था।
मैं उसे रोज़ देखता था... लेकिन अब मैं उसके लिए बस एक अजनबी बन चुका था।
लेकिन फिर... वो लौट आई।
(डायरी का छठा पन्ना)
वो फिर आई...
और मैं फिर से दीवाना हो गया।
इस बार, मैंने सोचा कि मैं सबकुछ पहले जैसा कर दूंगा।
लेकिन मुझे क्या पता था कि इस बार मुझे सिर्फ प्यार नहीं, दर्द भी मिलेगा।
"मैं तुम्हारे प्यार के काबिल नहीं।"
(डायरी का सातवां पन्ना)
मुझे शायरी लिखने का शौक था।
मैंने अपनी डायरी में उसके लिए शायरियां लिखीं।
और हर पन्ने के एक निशान बनाता था।
"जिस दिन कोई इस निशान को पूरा करेगा, वही मेरा सच्चा प्यार होगा।"
मेरे जन्मदिन से एक दिन पहले, मैंने वो डायरी उसे गिफ्ट कर दी।
उसने उसे पढ़ा, मुस्कुराई, और कहा—
"मैं तुम्हारे प्यार के काबिल नहीं।"
"जिसे तुमसे प्यार होगा, वही इस निशान को पूरा करने का हक़ रखता है।"
मेरे लिए ये सिर्फ शब्द नहीं थे... एक खामोश रिजेक्शन था।
लेकिन फिर भी, हम बातें करते रहे।
मुझे लगने लगा था कि शायद वो भी प्यार करने लगी है...
...पर मैं गलत था।
"मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है..."
(डायरी का आखिरी पन्ना)
धीरे-धीरे हम फिर दूर होने लगे।
एक दिन, मैंने मेरे दोस्त के फोन से उसे कॉल किया।
मैंने सिर्फ एक सवाल पूछा—
"हम बात कर सकते हैं?"
उसने कहा, "हाँ।"
मैंने उसे कॉलेज की छत पर मिलने बुलाया।
वो आई, और एक अजनबी की तरह मेरे सामने खड़ी थी।
फिर अचानक, उसने बात के बीच में कहा—
"मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं बचा है..."
मेरे हाथ कांप गए।
मैंने उसकी आँखों में देखा—
"ये मजाक है ना?"
उसने धीरे से सिर हिला दिया।
मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया था।
काश, मैं उसे गले लगा सकता... लेकिन अब कुछ भी नामुमकिन लग रहा था।
हम अगले दिन फिर मिलने वाले थे।
“अब मैं सिर्फ इंतज़ा
र कर रहा हूँ। अगर ये तुम तक आए तो कृपा करके आजाओ मेरे पास नहीं जी पा रहा हूं जो रिश्ता बनाओगी वो मंजूर है,,